अमरीश पुरी का 16 साल पहले निधन हो गया था, 30 साल के करियर में 200 फिल्मों की विरासत को छोड़कर गए अमरीश पुरी ने श्याम बेनेगल और गोविंद निहलानी जैसे दिग्गज निर्देशकों के साथ काम किया। उनका अधिकांश काम या तो गुणवत्ता-उन्मुख काम था या मुख्यधारा की व्यावसायिक फिल्में थीं। अपनी शक्तिशाली आवाज और स्क्रीन पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर वे सिनेमा में बुराई के प्रतीक बनकर उभरे। 1992 से अमरीश पुरी अपने भावप्रवण अभिनय से बॉलीवुड के सबसे भरोसेमंद चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित हो गए।
22 जून को उनकी जयंती पर जानिए उनकी बेहतरीन फिल्मों के बारे में ।
निशांत (1975) – इसमें उन्होंने क्रूर जमींदारों के परिवार में सबसे बड़े भाई की भूमिका निभाई है, जो एक स्कूली शिक्षक की पत्नी का अपहरण और बलात्कार करता है। अपने अभिनय से अमरीश पुरी दर्शकों के दिलों में खौफ भर देते हैं। हालांकि फिल्म में अन्य शानदार कलाकार भी थे, लेकिन अमरीश इस फिल्म में सभी पर हावी थे। यह भूमिका मूल रूप से बंगाली अभिनेता उत्पल दत्त के लिए लिखी गई थी। अमरीश ने भी अपने अभिनय से मुख्यधारा की हिंदी सिनेमा में महान छाप छोड़ी।
फूल और कांटे (1992) – यह फिल्म अजय देवगन के लिए लॉन्च पैड था। फिल्म में अमरीश पुरी की एक नेकदिल डॉन की भूमिका निभाई थी, जो अपने अलग हुए बेटे का सम्मान वापस जीतना चाहता है। उनकी भूमिका को दर्शकों ने काफी पसंद किया था। अमरीश हमेशा स्वीकार करते थे कि यह फिल्म उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ थी।
मुस्कुराहट (1992) – फूल और कांटे ने सिनेमा जगत में अमरीश के बुरे व्यक्तित्व की छवि को सुधारने में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद मुस्कुराहट में उन्होंने एक उदास बूढ़े आदमी की भूमिका निभाई, जिसके चेहरे पर एक युवती मुस्कुराहट लाती है। उसके जीवन की उदासी को दूर करती है। इस अद्भुत दिल को छू लेने वाली कहानी ने अमरीश पुरी की बुरी छवि को दर्शकों के दिलों से समाप्त कर दिया। निर्देशक प्रियदर्शन ने अपनी अधिकांश हिंदी फिल्मों में अमरीश को कास्ट किया है, जिसमें 2004 की हलचल भी शामिल है, जिसमें उन्होंने एक जिद्दी मुखिया की भूमिका निभाई थी, जो अपने दुश्मनों को हराने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
विरासत (1997) – जब प्रियदर्शन को तमिल ब्लॉकबस्टर थेवर मगन के रीमेक के लिए चुना गया था तो द गॉडफादर में मार्लिन ब्रैंडो पर आधारित सौम्य जमींदार की भूमिका अमरीश पुरी के अलावा कौन निभा सकता था? तमिल मूल में यह भूमिका शिवाजी गणेशन ने निभाई थी।
मिस्टर इंडिया (1987) – मोगेम्बो के रूप में हिन्दी फिल्म जगत को विलेन का एक नया चेहरा मिला और इस फिल्म ने अमरीश पुरी का करियर भी ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। कॉमिक बुक के बुरे पात्र के जैसी मोगेम्बो की भूमिका के साथ पुरी ने पूरा न्याय किया और सिनेमाई विलेन को एक नया रूप प्रदान किया। उनका पात्र आंशिक रूप से जेम्स बॉन्ड फिल्मों के खलनायक की तरह (उन्होंने हिटलर की पोशाक जैसी पोशाक पहनी थी) था। इस पात्र से अमरीश ने बच्चों को डरा दिया और खुश भी किया। यह भूमिका मूल रूप से अनुपम खेर के लिए लिखी गई थी।
दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1995) – एक अभिनेता के रूप में अमरीश का सबसे अच्छा दौर एक खलनायक के रूप में नहीं बल्कि एक कठोर अनुशासन का पालन करने वाले व्यक्ति के रूप में आया, जिस अनुशासन का पालन करना नई पीढ़ी को असंभव लगता है। यश चोपड़ा की इस सर्वकालिक ब्लॉकबस्टर फिल्म में शाहरुख खान से ज्यादा अमरीश पुरी मुख्य किरदार थे। लंदन का चैधरी बलदेव सिंह, जो पंजाब में अपने गांव लौटने के लिए उत्सुक हैं, अमरीश नेे इस चरित्र को अपने भावप्रवण अभिनय के साथ बखूबी निभाया। वह निस्संदेह असाधारण भूमिका थी।
परदेस (1997) – अप्रवासी भारतीय की भूमिका वाली अमरीश पुरी की दूसरी प्रसिद्ध फिल्म परदेस थी, जिसका देशभक्ति गीत ये मेरा इंडिया काफी लोकप्रिय हुआ था। दिलचस्प बात यह है कि अमरीश पुरी सुभाष घई की राम लखन और सौदागर से लेकर परदेस, यादें और किसना तक हर फिल्म का हिस्सा रहे। थे। दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के अप्रवासी भारतीय की भूमिका से परदेस की भूमिका पूरी तरह अलग थी।
घातक (1996) – एक व्यावसायिक फिल्म में यह अमरीश पुरी का सबसे बेहतर प्रदर्शन था। घातक में उन्होंने उत्तर प्रदेश के आदर्शवादी पिता की भूमिका निभाई थी, जो अपने बेटे (सनी देओल) के साथ इलाज के लिए मुंबई आता है। शहर में वह अत्याचारी खलनायक का सामना करने के लिए अपने बेटे को प्रेरित करता है। फिल्म में उन्होंने अपने अभिनय से सभी के दिल को जीत लिया था। फिल्म में उनके पात्र के चेहरे की हर शिकन अपनी कहानी कहती है।
नायक (2001) – फिल्म में उन्होंने एक धूर्त और भ्रष्टाचारी मुख्यमंत्री की भूमिका निभाई है, जो एक आम आदमी (अनिल कपूर द्वारा अभिनीत) को एक दिन का मुख्यमंत्री बनने की चुनौती देता है। उनके द्वारा निभाए गए किसी भी चरित्र से अधिक पाॅवरफुल यह पात्र था। एक भ्रष्ट राजनेता की भूमिका में उन्होंने दिखाया कि कैसे वे एक रूढ़िवादी भूमिका को रोचक बना सकते हैं। इस भूमिका के साथ सिर्फ अमरीश पुरी ही न्याय कर सकते थे।
शरारत (2002) – फिल्म में उन्होंने प्रजापति नाम के बूढ़े का रोल निभाया है। जो अत्यंत क्रोधी और आंशिक रूप से भ्रमित है। उसे परिवारवाले वृद्धाश्रम में छोड़ जाते हैं। अमरीश का किरदार वृद्धाश्रम में रहने वाले सभी बुजुर्गों को हमेशा प्रोत्साहित करता है और उन्हें निराश नहीं होने की सलाह देता है। फिल्म में अभिषेक बच्चन के साथ बहस के उनके दृश्य फिल्म के संदेश को दर्शकों के बीच पहुंचाने का काम काम करते हैं।
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